V.S Awasthi

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भूल गईं

भूल गईं 
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सुबह से उठ कर झाड़ू बहारू घर की मेहरारू भूलि गईं।
चूल्हा चौका का लीपप पोतब घर की मेहरारू भूलि गईं।।
घर आंगन गोबर से लीपप घर की मेहरारू भूलि गईं।
गोबर छुयैं मा घिन लागति है कंडा पाथब भूलि गई।।
घरन मा जब से मिक्सी आई सिल बट्टा का चलावब भूलि गईं।।
गेहुंअन की बस रोटी बनती हैं जोन्डी की पनेथी भूलि गईं।
गेहूं ऐसी भई मोहब्बत ज्वार,बाजरा भूलि गईं।।
होटल का खाना अच्छा लागै घर का खाना भूलि गईं।
जीन्स,टाप से भई मोहब्बत साड़ी पिछौरी भूलि गईं।।
बाय-बाय टाटा याद रहा चरणन लागन का भूलि गईं।
केक काटि कै हैप्पी बर्थडे कड़ी, गुलगुला भूलि गईं।।
मम्मा,डैडा कहि कै पुकारैं अम्मा, बप्पा सब भूलि गईं।
ब्रा,सिस बस याद रहे अब भइया, दीदी का भूलि गईं।।
पराई सभ्यता अपनावैं सनातनी सभ्यता भूलि गईं।
पश्चिमी सभ्यता हावी होइगै भारत की संस्कृति भूलि गईं।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर

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2 Comments

Renu

15-Mar-2023 11:43 PM

👍👍🌺

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Sachin dev

15-Mar-2023 11:10 PM

Nice

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